ज्योतिषाच्यांनुसार कुंडली का पंचम भावना संतान भावनेची कथा. जेव्हा संतान भावना बलवान आहे किंवा त्या नंतर मनावर शुभेच्छा देणा ग्रह्या ग्रहांचे दर्शन होते तेव्हा संतान योगाची शक्यता जास्त असते. ... जर कुंडली मध्ये बृहस्पति स्टोअर, भाग भावना किंवा पुन्हा एकादश भाव आहे किंवा पुन्हा महादशा चालू आहे तर संतान के प्रबल योग बनत आहेत.
कुंडलीमध्ये पंचम भावनेत, संतान भावनेने व्यक्त किया, पंचम भावना अधिक बलवान हो गया है, व्यक्ति की संतान सुख उतनी ही प्राप्ति हो रही है, लेकिन जिनकी कुंडली में पंचम भाव अशुभ हो गई है, उसे संतान सुख प्राप्त करने वाली है ज्यायोगे कुंडली होते त्याप्रमाणे योगासने होतात ज्यातून संतान सुख प्राप्त होते.
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार कुंडली का पंचम भाव संतान भाव कहलाता है। जब संतान भाव बलवान होता है या फिर उस पर भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तब संतान योग की संभावनांए अधिक होती है। यदि महिला की कुंडली में शुक्र अच्छा होता है तो वह आसानी से कन्सीव कर जाती है। इसके बाद जन्मकुंडली में बृहस्पति का विचार किया जाता है। क्योंकि बृहस्पति के शुभ होने पर शिशु गर्भ में स्वस्थ रहता है और स्वस्थ ही जन्म लेता है। कुंडली में अगर लग्नेश और पंचमेश की युति लग्न या फिर पचंम भाव में हो रही हो तो भी यह योग एक संतान उत्पत्ति के लिए एक अच्छा योग माना जाता है। यदि कुंडली में बृहस्पति लग्न, भाग्य भाव या फिर एकादश भाव में हो या फिर इसकी महादशा चल रही हो तो भी संतान के प्रबल योग बनते हैं।
इसके अलावा शुक्र यदि एकादश भाव में बैठकर पंचम भाव पर दृष्टि डाले या फिर वह स्वंय ही पंचम भाव में विराजित हो तो भी संतानोपत्ति की प्रबल संभावना होती है। यदि कोई भी व्यक्ति संतान की उत्पत्ति की परेशानी से परेशान है तो उसे चिकित्सक के साथ- साथ अपनी जन्मपत्री का भी किसी कुशल ज्योतिष आचार्य से अध्ययन कराना चाहिए।
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